कामचोर - लोक कथा
एक राज्य में बहुत सारे लोग आलसी होने कि अभिनय करने लगे। उन्होंने सारा कामधाम करना छोड़ दिया। यहाँ तक कि अपने लिए खाना बनाना भी छोड़ दिया और खाने के लिए दूसरों पर निर्भर रहने लगे। ज्यादातर समय वे लेट कर रहते या सोये रहते।
लेकिन उन्हे खाना खाने की समस्या हो रही जिसका निराकरण जरूरी था क्योंकि इन आलसियों को खिलाने में लोगो को परेशानी होने लगी । एक दिन सभी आलसियों ने राजा से मांग की की सभी आलसियों के लिए एक Vishramalaya बनवाना चाहिए तकि वो वहा पे आराम कर पये और उनके खाने की व्यवस्था भि होनी चाहिए।
राजा नेक और दयालु होने के साथ साथ बुद्धिमान था। उसने कुछ सोचकर मंत्री को एक विश्राम गृह बनाने का आदेश दिया। विश्राम ग्रह के तैयार होने पर सभी आलसी वहाँ जाकर खाने और सोने लगे।
एक दिन राजा अपने मंत्री और कुछ सिपाहियों के साथ वहाँ आया और उसने एक सिपाही से कहकर आश्रम में आग लगवा दी। आश्रम को जलता देख आलसियों में भगदड़ मच गई और सभी जान बचाने के लिए आश्रम से दूर भाग गए।
जलते हुए आश्रम में दो आलसी अभी भी सोये हुए थे। एक को पीठ पर गर्मी महसूस हुई तो उसने पास ही में लेटे दूसरे आलसी से कहा, “मुझे पीठ पर गर्मी लग रही है, ज़रा देखो तो क्या माजरा है ?”
तुम दूसरी करवट लेट जाओ”, दूसरे आलसी ने बिना आखें खोले ही उत्तर दिया।
यह देखकर राजा ने अपने मंत्री से कहा, “केवल ये दोनों ही सच्चे आलसी हैं। इन्हें भरपूर सोने और खाने को दिया जाए। शेष सारे कामचोर हैं। उन्हें डंडे मार मार कर काम पर लगाया जाए।”
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.