Nani Ki Kahani-Ek Sona Ka Sikka
Nani Ki Kahani-Ek Sona Ka Sikka
भोलू
अपने
नाम
के
अनुसार
बहुत
सीधा
और
भोला-भाला
इंसान
था।
एक
बार
भोलू
जंगल
के
रास्ते
से
जा
रहा
था।
रास्ते
में
उसे
एक Sona Ka Sikka पड़ा
हुआ
दिखाई
दिया,
उसने
वो
सिक्का
उठा
लिया।
न
जाने
किस
बेचारे
का Sona Ka Sikka गिर
गया
है
यहाँ।
यह
मेरा
तो
है
नही
इसलिये
मैं
इसे
नही
रख
सकता।
मैं
इसे
फेंक
भी
नही
सकता
आखिर
यह Sona Ka Sikka जो
है।
यही
सब
सोचता
हुआ
भोलू
अपने
रास्ते
पर
आगे
बढ़ा
जा
रहा
था।
थोड़ा
आगे
चलकर
जंगल
में
एक
विशालकाय
पेड़
के
नीचे
आसन्न
जमाए
एक
साधु
बाबा
माला
जप
रहे
थे।
भोलू
ने
सोचा
कि
क्यों
ना
यह Sona Ka Sikka बाबा
को
दान
में
दे
दिया
जाए।
भोलू
बाबा
के
पास
गया
और
बोला
की
बाबाजी
मुझे
यह
सोने
का Sona Ka Sikka रास्ते
में
पड़ा
हुआ
मिला
है,
मैं
आपको
यह Sona Ka Sikka दान
में
देना
चाहता
हूँ।
Sona Ka Sikka देखकर
बाबा
बोले
की
बेटा
यह Sona Ka Sikka हमारे
किस
काम
का।
हम
साधुओं
को
धन
दौलत
से
कोई
मोह
नही,
जिसे
धन
से
मोह
वो
साधु
नही।
इसे
तुम
किसी
गरीब
को
देदो
ताकि
वो
अपना
और
अपने
परिवार
का
पेट
भर
सके।
साधु
की
बात
मानकर
भोलू
फिर
अपने
रास्ते
पर
चल
पड़ा।
आगे
भोलू
ने
देखा
की
किसी
राजा
की
विशाल Sona Ka Sikka भारी
लाव-लश्कर
के
साथ
बढ़ी
जा
रही
है।
उसने
एक
सैनिक
से
पूछा
कि
भाई
इतनी
बड़ी Sona Ka Sikka के
साथ
महाराज
कहाँ
जा
रहे
हैं?
सैनिक
ने
बताया
कि
हमारे
महाराज
पड़ोसी
देश
पर
हमला
करके
उसे
लूटने
जा
रहे
हैं।
भोलू
राजा
के
रथ
के
पास
पहुंचा
और Sona Ka Sikka राजा
को
देते
हुए
बोला
कि
लीजिये
महाराज
यह Sona Ka Sikka आप
रख
लीजिये।
राजा
ने
हैरान
होते
हुए
भोलू
से
पूछा
कि
तुम
मुझे
यह Sona Ka Sikka क्यों
दे
रहे
हो?
भोलू
बोला
कि
महाराज
एक
साधु
ने
मुझे
कहा
था
किसी
निर्धन
–
गरीब
को
यह
सिक्का
दे
देना।
क्या
मैं
तुम्हें
गरीब
लगता
हूँ?
मैं
राजा
हूँ।
–
राजा
गुस्से
में
बिदक
कर
बोला।
भोलू
बोला
–
महाराज
आप
यदि
अमीर
होते
तो
इतनी
बड़ी Sona Ka Sikka लेकर
पड़ोसी
देश
को
लूटने
क्यों
जाते?
आप
अपना
खजाना
भरने
के
लिए
आक्रमण
करेंगे
लेकिन
इसके
लिए
दोनों
देशों
के
कितने
ही
निर्दोष
सैनिकों
को
अपनी
जान
गंवानी
पड़ेगी।
कितनी
ही
विवाहित
महिलाएं
विधवा
हो
जाएंगी,
माओं
से
उनके
बेटे
छिन
जाएंगे
तथा
कितने
परिवार
बर्बाद
हो
जाएंगे।
भोलू
की
बातों
का
राजा
पर
बहुत
गहरा
प्रभाव
पड़ा।
राजा
ने
अपनी
सेना
को
वापस
चलने
का
आदेश
दिया
और
फिर
कभी
किसी
देश
में
लूटपाट
ना
करने
का
प्रण
लिया।
इसके
बाद
राजा
ने
अपनी
सेना
का
इश्तेमाल
सिर्फ
प्रजा
की
रक्षा
के
लिए
तथा
आपातकाल
स्थितियों
से
निपटने
के
लिए
ही
किया।
पड़ोसी
देशों
पर
हमले
तथा
लूटपाट
करने
के
स्थान
पर
राजा
ने
मंत्रियों
के
साथ
मिलकर
अपने
देश
के
किसानों,
व्यापारियों
तथा
मजदूरों
आदि
के
लिए
कई
अच्छी
योजनाओं
पर
काम
किया
जिससे
उसका
देश
बहुत
समृद्ध
और
खुशहाल
होता
चला
गया।
अपने
प्रियजनों
के
साथ
यह
कहानी
शेयर
करें
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.